पंडे, पाखंडी और जनता
चारों ओर पंडे, पाखंडियों का जोर है,
उनके काले कारनामोंं का शोर है.
फिर भी कोई उन्हें सजा नहीं देता,
शायद भ्रष्ट नेताओं का जोर है.
क्या दे पाएगा पंडा हमको ज्ञान ?
जब खुद वह औरतखोर है.
जो फंस गया इनकेेे जाल में
संकट में उसके जीवन की डोर है.
जनता भी है, अपने आप को लुटवाती
वह भी अंधविश्वासी और कामचोर है.
मेरी यह कविता 'सरिता' नामक पत्रिका में सन् 2000 दिसंबर में प्रकाशित हुई थी उसी की कतरन यहांं शेयर की है.
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