आओ इस छद्म राष्ट्रीयता का जश्न मनाएं
जहां रोम जले और नीरो बांसुरी बजाए
खून पीने वाले ये एकता के सिपाही
जिन का घाव अभी भरा नहीं है
पहना दो उसे कफन
क्योंकि वह अभी मरा नहीं है
और सारी राष्ट्रीयता
एक कूप मंडूक के समान
भोग रहे हैं जो आजादी की वीभत्सता
एक पागल अहेरी के समान
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